चुनावी बाज़ार निबट चुका है , राजनीती का खेल फ़िर शुरू हो जाएगा हम कार्टूनिस्ट कितना भी उघाडें नेता कोई न कोई चोला पहन कर फ़िर मैदान में आ ही जाते हैं
भारत की जनता के आगे मजबूरी है उसे किसी न किसी को चुनना ही पड़ता है
फ़िर हम भारतीय लोग बोर भी जरा देर में होते हैं परिवेर्तन और क्रांति से हमें
डर लगता है हमें अनजाने देवदूत से जाना पहचाना शैतान ज्यादा ठीक लगता है
Saturday, May 16, 2009
Thursday, May 14, 2009
Wednesday, May 13, 2009
Thursday, May 7, 2009
Wednesday, May 6, 2009
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