Friday, March 27, 2009

चुनावी चाल

सेकुलर नेताओं से एक सवाल :
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तथाकथित साम्प्रदायिक लोगों को
सत्ता से बाहर रखने में क्या ये
भूल जाना जायज़ है कि ये
लडाई भी किसी साम्प्रदायिक
दंगे से कम नहीं !!!

बात में से बात


देश के नेतालोग भी आम इंसान ही हैं
कोई जोगी संत नहीं लेकिन भारत
जैसी विविधता वाले देश में नेता
ही ये मेरा राज्य ये तेरा राज्य
के स्वर में बात करेंगे तो जनता
भी उसी भाषा को अपनाएगी

Sunday, March 22, 2009

अंतर बहुत ज्यादा नहीं कभी राजा महाराजा जनता को भेड़ बकरिओं जैसे हांका करते थे
और आज नेतालोग भेड़चाल पैदा करके वोट हासिल करना कहते हैं !!!

ड्रामाक्रेसी


ड्रामाक्रेसी


draam

Monday, March 16, 2009


आजकल ये जिन्दगी कुछ यूँ भी काटी जा रही है
मेरी तन्हाई भरी सड़कों पे बांटी जा रही है

अक्ल पे गुरबत का साया है ज़रूरी इसलिए
उंगलियाँ, गर्दन कभी तनखाह काटी जा रही है

बात जो मैंने कही उस रोज़ तेरे कान में
शहर के घटिया रिसालों में वो छापी जा रही है

भेड़ का चेहरा नफ़रत और कोयल की आवाज़
bhediyon mein आजकल ये सिफत आती जा रही है

एक पल की बात

मैंने किसी को को कहते सुना था कार्टून इंजेक्शन का असर करता है और इस बात का सबूत भी देखा पर
फ़िर भी कहीं एक खोज मन में बनी रहती है कि क्या हम इन कार्टूनों से भ्रष्टाचार राजनितिक ढोंग या किसी भी बुराई को वास्तव में मिटाने कि कोशिश करते हैं या सिर्फ़ ख़ुद को मशहूर करने की चाहत में लगे रहते हैं .....
इस बात पर ही निर्भर करता है कि हम कार्टून दिल से बनते है या बस दिमाग से पाठकों से अपेक्षा
रहता हूँ कि वे फैसला करें कि मेरे कौन से कार्टून दिल से निकले हैं और कौन से दिमाग से .........

पुराना माल

चुनाव लीला

Friday, March 13, 2009

मेरी बात


व्यंग की भाषा बोलना मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है मानो किसी किताब को अन्तिम पन्ने से पढ़ना

मगर कुछ बुधिजीवीओं को शायद ये पसंद नही आए लेकिन कोई कार्टून ड्राइंग रूम की दिवार पर

लटकी पेंटिंग नहीं कार्टून तो कभी कभी एक मच्छर जैसा तकलीफदेह भी हो सकता है

आज का पंगा


Monday, March 9, 2009

कार्टून एक ऐसी भाषा है जिसमे बिना कुछ कहे भी पुरा वक्तव्य जाहिर हो सकता है मुझसे पहले भी कार्टूनिस्टों ने बहुत कुछ अनकही बातें उजागर की हैं और आगे भी ये होता रहेगा , मैं बस इस अतुल धारा में अपनी दो चार
अंजुली ही डाल रहा हूँ हो सकता है कुछ विचार किसी को चुभ जाएँ किंतु ये सच्चाई भी अटल है की कार्टून विधा
एक नकारात्मक विचार से जन्मी है बहरहाल मित्रों और आलोचकों की राय का स्वागत है
----श्याम jagota

नया माल