
Sunday, February 7, 2010
Saturday, February 6, 2010
Friday, February 5, 2010
Wednesday, February 3, 2010
एक फ्रीलांस कार्टूनिस्ट की रचना की कीमत चुकाने को पैसे नहीं हैं उनकी जेब में

मित्रों .... मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कुछ पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक मुफ्त का चन्दन घिसते हैं
मेरा आशय मेरे कार्टूनों से है जिन्हे एक दैनिक में मेरी जानकारी के बिना छापा जा रहा है !
मेरा उन तथाकथित बुद्धिजीविओं से एक सवाल हैं ....... क्या वे अपने तन के कपडे चोरी
करके पहनते हैं खाना भीख में या चोरी करके खाते हैं जाहिर है नहीं ....
तो फिर एक फ्रीलांस कार्टूनिस्ट की रचना की कीमत चुकाने को पैसे नहीं हैं उनकी जेब में
या आसान शिकार जान कर मुफ्त का माल खाने कि आदत हो गयी है ..... या
पत्रकारिता कि आड़ लेकर कुछ उच्चकों कि जमात इक्कठी होती जा रही है
मुझे अंतर नहीं पड़ता इन बातों से पर दुःख होता है कि मैं भी पत्रकारिता का एक
हिस्सा हूँ और इन बातों से मीडिया जगत कि विश्वसनीयता कम होती जा रही है
-श्याम जगोता
Tuesday, February 2, 2010
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