Friday, March 13, 2009

मेरी बात


व्यंग की भाषा बोलना मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है मानो किसी किताब को अन्तिम पन्ने से पढ़ना

मगर कुछ बुधिजीवीओं को शायद ये पसंद नही आए लेकिन कोई कार्टून ड्राइंग रूम की दिवार पर

लटकी पेंटिंग नहीं कार्टून तो कभी कभी एक मच्छर जैसा तकलीफदेह भी हो सकता है

आज का पंगा


Monday, March 9, 2009

कार्टून एक ऐसी भाषा है जिसमे बिना कुछ कहे भी पुरा वक्तव्य जाहिर हो सकता है मुझसे पहले भी कार्टूनिस्टों ने बहुत कुछ अनकही बातें उजागर की हैं और आगे भी ये होता रहेगा , मैं बस इस अतुल धारा में अपनी दो चार
अंजुली ही डाल रहा हूँ हो सकता है कुछ विचार किसी को चुभ जाएँ किंतु ये सच्चाई भी अटल है की कार्टून विधा
एक नकारात्मक विचार से जन्मी है बहरहाल मित्रों और आलोचकों की राय का स्वागत है
----श्याम jagota

नया माल

Thursday, March 5, 2009