
Thursday, March 19, 2009
Monday, March 16, 2009

आजकल ये जिन्दगी कुछ यूँ भी काटी जा रही है
मेरी तन्हाई भरी सड़कों पे बांटी जा रही है
अक्ल पे गुरबत का साया है ज़रूरी इसलिए
उंगलियाँ, गर्दन कभी तनखाह काटी जा रही है
बात जो मैंने कही उस रोज़ तेरे कान में
शहर के घटिया रिसालों में वो छापी जा रही है
भेड़ का चेहरा नफ़रत और कोयल की आवाज़
bhediyon mein आजकल ये सिफत आती जा रही है
एक पल की बात
मैंने किसी को को कहते सुना था कार्टून इंजेक्शन का असर करता है और इस बात का सबूत भी देखा पर
फ़िर भी कहीं एक खोज मन में बनी रहती है कि क्या हम इन कार्टूनों से भ्रष्टाचार राजनितिक ढोंग या किसी भी बुराई को वास्तव में मिटाने कि कोशिश करते हैं या सिर्फ़ ख़ुद को मशहूर करने की चाहत में लगे रहते हैं .....
इस बात पर ही निर्भर करता है कि हम कार्टून दिल से बनते है या बस दिमाग से पाठकों से अपेक्षा
रहता हूँ कि वे फैसला करें कि मेरे कौन से कार्टून दिल से निकले हैं और कौन से दिमाग से .........
फ़िर भी कहीं एक खोज मन में बनी रहती है कि क्या हम इन कार्टूनों से भ्रष्टाचार राजनितिक ढोंग या किसी भी बुराई को वास्तव में मिटाने कि कोशिश करते हैं या सिर्फ़ ख़ुद को मशहूर करने की चाहत में लगे रहते हैं .....
इस बात पर ही निर्भर करता है कि हम कार्टून दिल से बनते है या बस दिमाग से पाठकों से अपेक्षा
रहता हूँ कि वे फैसला करें कि मेरे कौन से कार्टून दिल से निकले हैं और कौन से दिमाग से .........
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